Monday 27 April 2015

Dedicated to Nepal Earthquake Victims:

कुदरत जब इन्साफ करती है
झोंपड़ी ही नहीं महलों को भी साफ़ करती है
लाख पहरे तुम लगा लो
दीवारों को और बढ़ा लो 
हम भी तिनके और जुटा लें
झोंपड़ी में दरवाज़ा एक और लगा लें
ना कोई भगवान, ना अल्लाह फिर आएगा
ज़लज़ला मौत का जब धरती पे फेल जायेगा
रात तुम्हारी भी काली होगी
नींद हमारी भी बेमानी होगी
पेट जब भूख को आवाज़ देगा
थाली दोनों की तब एक ही सजेगी
ना कन्धा तेरा ऊँचा होगा
ना आवाज़ कहीं मेरी सुनाई देगी
कुदरत जब इन्साफ करेगी
ना तुझको, ना मुझको वो माफ़ करेगी...!!!



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