झूठ कहते हैं वो छत पत्थरों से बनती है
खुला आसमां भी बुरा सहारा तो नहीं
लगाते होंगे दीवारों पे वो सोने की परत
सर्द हवाओं की दीवारों के होते हुए हम भी बेसहारा तो नहीं
वो जन्म लेते हैं जिन्दगी जीने के लिए
जिन्दगी हमें जीती है जन्म देने के लिए
मौत भी पे मातम उनके तमाम होता है
मेरे मरने भर से भी मौत नाम बदनाम होता है
उन्हे रास्ते में अपने पत्थर रास नहीं आता
इन्ही पत्थरों के बीच मजा हमें मखमली घास का है आता
उनके कुत्ते की भी किस्मत सा भाग नहीं है
मैं हर शाम भूखा रह जाता वो चांदी की थाली में भर-भर के है खाता
उनकी गाड़ी के पहिए से बुरे मेरे पांव हो चले हैं
खून दोनो ही कातिल समान लिए हुए हैं
वो पिछले मोड़ पे गरीब को कुचल आए हैं
मेरे पैरों पे रंग मेरे खून का ही चढ़ा हुआ है
Alexander Dhissa
Tuesday, 22 January 2013
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