Sunday, 13 May 2012

भारतीय मीडिया का महान देश

अजब भारत की गजब दास्तान, वो इसलिए कहा कि आज टीम इंडिया (जिसपे कि पूरे हिन्दुस्तान की इज्जत समझी जाती है) आस्ट्रेलिया से 110 रन से हारी । खबर ये नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए क्योंकि खेल में हार-जीत मायने नहीं रखती मुद्दा ये है कि टीम की हार के बाद भी एक टीबी चैनल पूरे एक घण्टे कप्तान धोनी की तारीफ में सीना फुला कर कसीदे गढ़ता रहा। वहीं दुसरी और ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने में जी जान से लगी हॉकी टीम ने कल सिंगापुर को 15-1 से और आज इटली को 8-1 से हराया। ये खबरें सिर्फ न्युज चैनलों के टिकर में ही जगह बना पाई और तो और देश के खेल प्रेमी होने का दावा करने वालों को लोगों को ये मालूम भी नहीं होगा पर क्रिकेट मैच की हर एक बाल का हिसाब पूरा रखा मिलेगा।

ये हमारा वो मीडिया है जो अपने आप को लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ होने का दावा गाहे-बगाहे ठोकता रहता है ओर प्रैस की स्वतन्त्रता की बात कहते हुए ये चीज नहीं साफ करता कि स्वतन्त्रता किस शर्त पर और किस हद तक। आजकल उतरप्रदेश का चुनाव पुरा माहौल गर्म किए हुए है और हमारे सभी पत्रकार साथी वहां पर अपना अपना अड्डा बना कर बैठे हुए है कि कब किस नेता कि जुबान फिसल जाए ओर वो कोई ऐसी बात कह दे कि आचार संहिता का उलंघन भी हो जाए और दिन भर चैनल में चलाने के लिए एक सस्ती सी खबर भी मिल जाए । और कहीं ऐसा हुआ तो फिर शुरु हो जाता है बाल की खाल निकालने का काम। नेता भी ऐसे ऐसे जिन्हे सुन कर ऐसा लगता है कि उन्हें वोट डालकर गुनाह कर दिया ।


अभी हाल ही में महाराष्ट्र निकाय चुनाव हुआ जिसमें मतदान प्रतिशत बहुत ही कम पाया गया वोट डालने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बार बार बताया जा रहा था कि फलां हीरो हीरोइन आ कर वोट ड़ाल रहे हैं पर ये तरीका कारगर नहीं हुआ इसके बजाए जनता को अगर ये बताया जाता कि आप वोट डालकर किसी भी प्रत्याशी को ना चुनने का विकल्प भी चुन सकते हो, जो कि हमारी आधी से अधिक जनता को मालुम नहीं होगा कि इस तरह का प्रावधान भी रहता है तो शायद कुछ और लोग मतदान केन्द्र तक तो आ ही जाते । अब क्या करें कि इस तरह की चीजों को प्रोमोट करने प्रावधान या यूं कहें कि प्रचलन हमारे यहां नहीं है ।

वहीँ दूसरी और उडीसा में दलितों के घर जलाए गए कोई खबर ही ना हुई यहां हर रोज महिलाएं ब्लात्कार की शिकार होकर घर की चार दिवारी में कैद होकर रह जाती हैं खबर नहीं बनती। हॉनर किलिंग के नाम पर हर रोज मासुमों की बलि चढ़ती है, हजारों की संख्या में किसान खुदकुशी कर लेते हैं कोई पूछ ही नहीं होती। केंसर से मरने वालों का ग्राफ हर साल बढ़ा मिलता है कभी कड़ाके की ठंड की वजह से तो कभी गर्म लू की वजह से सड़क पर सोए लोग नींद में ही सांस छोड़ देते हैं कोई कपड़ा देने भी नहीं पहुंच पाता है ।

खबरें तो तब बनती हैं जब राहुल गांधी दलितों के घर में खाना खाता है, जब युवराज सिंह कैंसर की पहली स्टेज से ठीक होकर ट्वीट करता है, जब शाहरुख खान किसी को पार्टी में थप्पड़ रसीद करता है, जब सचिन सौंवे शतक के पास पहुंच जाता है, जब देश के धन्ना सेठों में एक देश की सबसे बड़ी बिल्डिंग सिर्फ रहने के लिए बनाता है, जब एक आर्मी चीफ सिर्फ अपनी जन्मतिथि को ठीक करने के लिए कोर्ट में अर्जी ड़ालता है । ये सब खूब खबरें बनती हैं और निश्चित तौर पर खूब पैसा भी बना कर देती हैं।

अब इसका क्या करें कि हमारी गरीब भूखी जनता को न्यूज सेंस ही नहीं है उन्हे कौन समझाए कि तुम मरो या जियो इसमें न्युज एलीमेंट कहां है। क्या वो इस चीज का हिसाब दे सकते हैं कि उन की ये दुख भरी कहानी सुनने का टाईम इस समृद्भ जनता के पास है भी कि नही । या फिर ये गारन्टी ही दे दें कि उनके साथ होने वाले ब्लात्कार, हत्याएं, सामाजिक तिरस्कार में कुछ नया है जो इससे पहले कभी ना हुआ हो । सही से आकलन अगर किया जाए तो दुनिया का सबसे बेहतर न्यूज सेंस हमारी मीडिया को है तभी तो कैसे हर बडी खबर हिट हो जाती है और कैसे ये छोटे लोगों की छोटी छोटी खबरें सिर्फ टिकर या फिर अखबार के किसी कोने में सिमट कर रह जाती हैं ।

ये मान लेना चाहिए की देश की खबर और समस्या किसे माना जाए ये बहुत हद तक मीडिया पर निर्भर करता है ... तभी तो सन्नी लियोन और पूनम पांडे को देश में महिला सशक्तिकरण के रूप में देखा जाता है ये वो लोग है जो प्रसिद्धी के लिए अपने बर्थडे या फिर क्रिकेट के जीतने पर उटपटांग हरकतें करते पाए जाते हैं वहीँ दूसरी और जरावा ट्राईब की महिलाओं के साथ होने वाले अपराध का कई दिनों तक मीडिया को पता ही नहीं होता है फेसबुक और ट्विट्टर को देश की आवाज कहा जाता है एक तबका इसी देश का ऐसा भी है जिसके पास अभी तक लाइट ही नहीं पहुंची है .

एक तरह का वातावरण बनाया जा रहा है जहाँ मूल समस्याओं से हट कर बनावटी चीजों पे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है .. असल में बाज़ार व्यक्ति की सोच और कार्यप्रणाली पर असर डालता है ना कि व्यक्ति बाज़ार पर... तभी तो साधारण या फिर खादी रहने वाली कमीजों कि जगह रेमंड और ली कूपर जैसी भारी भरकम नामों और दामों वाली कंपनियों ने ले ली है....

एलेग्जेण्ड़र ढ़िस्सा
9990600891
New Delhi
reachdhissa@gmail.com

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